LYRIC

बाबा गंगाराम जी की आरती Aarti Baba Ganga Ram Ji Ki

 

जय हो गंगाराम बाबा जय हो गंगाराम। कष्ट निवारण मंगल दायक हो सब सुख के धाम ॥ बाबा”

सच्चे मन से ध्यान धरे जो उनके सारो काम। धन-वैभव वह सब सुख पाता जाने जगत तमाम ॥ बाबा”

प्रातःकाल थारी करां वन्दना लेकर चन्दन पुष्प चढ़ावा थारे और रोग शोक काटो थे सबका करां बसो

आ मन्दिर जो दर्शन करसी पासी सुख थारो नाम। प्रणाम ॥ बाबा” झुंझनू धाम। सन्तान ॥ बाबा”

देवलोक में आप विराजो सारे जग जो कोई सुमिरण करे आपका हो निश्चय श्रद्धा भाव जो मन में राखे

धरे उसकी रक्षा आप करो नित हो करुणा के में हो महान। कल्याण ॥ बाबा” आपका ध्यान। धाम ॥ बाबा”

म्हें हां बालक थारा बाबा म्हानै नही कुछ ज्ञान। हाथ जोड़कर विनती करां म्हें हां भोला नादान ॥ बाबा”

सुख सम्पत्ति के देने वाले सदा करो कल्याण। भूल-चूक म्हारी माफ करो थे देव बड़े बलवान ॥ बाबा”

देवलोक में आप विराजो सारे जग जो कोई सुमिरण करे आपका हो निश्चय श्रद्धा भाव जो मन में राखे

धरे उसकी रक्षा आप करो नित हो करुणा के में हो महान। कल्याण ॥ बाबा” आपका ध्यान। धाम ॥ बाबा”

म्हें हां बालक थारा बाबा म्हानै नही कुछ ज्ञान। हाथ जोड़कर विनती करां म्हें हां भोला नादान ॥ बाबा”

सुख सम्पत्ति के देने वाले सदा करो कल्याण। भूल-चूक म्हारी माफ करो थे देव बड़े बलवान ॥ बाबा”

धरा रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़ कर खम्बा। रक्षा करि प्रहलाद बचायो, हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं। क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दया सिंधु दीजै मन आसा ।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी। मातंगी धूमावती माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।

श्री भैरव तारा जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी। केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।

कर में खप्पर खड़ग विराजे, जाको देख काल डर भाजे। सोहे अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।

नाग कोटि में तुम्हीं विराजत, तिहूं लोक में डंका बाजत । शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।

महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी। रूप कराल काली को धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब-तब । अमर पुरी औरों सब लोका, तब महिमा सब रहे अशोका ।

बाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर नारी। प्रेम भक्ति से जो जस गावै, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे।

ध्यावै तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म मरण ताको छुटि जाई। जोगी सुर मुनि कहत पुकारी, योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।

शंकर आचारज तप कीनों, काम अरु क्रोध जीति सब लीनों। निशि दिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।

शक्ति रूप को मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो । शरणागत हुई कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब भवानी।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहीं कीन विलम्बा । मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ।

आशा तृष्णा निपट सतावे, रिपु मुरख मोहि अति डरपावे। शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इक चित तुम्हें भवानी।

करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला। जब लगि जियाँ दया फल पाऊँ, तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊँ।

दुर्गा चालीसा जो गावैं, सब सुख भोग परम पद पावैं। देवीदास शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी।

|| दोहा ||

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे निःशंक। मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिये अंक ॥

 

 

 

 



Added by

Sanatani

SHARE

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

VIDEO